डॉ अनुराधा फाल्के, शिशु मनोचिकित्सक
नोबल हॉस्पिटल, मुंबई
डिग्री- बीए, एमए, पीजी- गाइडेंस एंड काउंसलिंग
अनुभव- 14 वर्ष
बच्चों में छोटी उम्र से ही कई सारी चीजों को लेकर बहुत अधिक जिज्ञासा होती है जिसमें कि सेक्स और प्राइवेट पार्ट से जुड़ी बातें भी शामिल होती हैं। बहुत छोटे बच्चों में जो जिज्ञासा है, वो इस बात को लेकर है कि बच्चों को कहां से लाया जाता है, पेट में क्यों शिशु रहता है, न कि इसमें कि शिशु को दुनिया में लाने की प्रक्रिया क्या होती है? आज भी कई सारे बच्चे ऐसे हैं जिन्हें कि सही ढंग से सेक्स एजुकेशन नहीं मिल पाती है और उनका जिज्ञासु मस्तिष्क जगह-जगह सवालों के जवाब खोजता है। ऐसे में बहुत जरूरी है कि माता-पिता बच्चों का पालन-पोषण करने के साथ ही सही उम्र में उन्हें थोड़ी-थोड़ी और आवश्यक शिक्षा देते चलें।
डेढ़ से दो वर्ष
डेढ़ से दो वर्ष के बच्चे अपने शरीर के अंगों के नाम यदि नहीं ले पा रहे हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि वे उन्हें समझते भी नहीं है। इतने छोटे बच्चे अक्सर प्राइवेट पार्ट को छूने लगते हैं खेलते वक्त, ऐसे में आप बढ़ावा देने की बजाय उन्हें समझाएं। बार-बार उनके हाथ को हटाएं। कोई भी ऐसा तरीका आप आजमाएं कि वे इस बात को समझें कि यह अंग शरीर के अन्य अंगों से अलग हैं।
दो से चार वर्ष
यह ऐसी उम्र है जिसमें बच्चों का प्री-स्कूल में दाखिला करवाया जाता है। इस उम्र में बच्चे कार्टून भी खूब देखते हैं। ऐसे में वे जब किसी गर्भवती स्त्री को देखते हैं तो वे समझते हैं कि ये सामान्य स्त्रियों से अलग हैं। कार्टून के माध्यम से वे इतना भी जानने लगते हैं कि बच्चे पेट से आते हैं। ऐसे में उनसे ये बात छुपाएं नहीं बल्कि उनके जन्म के माध्यम से ही बताएं कि किस तरह वे भी पेट से जन्मे हैं, इतना जानना उनके लिए पर्याप्त होगा।
पांच से आठ वर्ष
इस उम्र में बच्चे इस बात को अच्छे से जानने और समझने लगते हैं कि समाज में पुरुष और महिला के अलावा भी लिंग हैं। इस दौरान इस बात का ध्यान रखें कि बच्चे फोन पर क्या देख रहे हैं। उन्हें अपने साथ लेकर बैठें और समझाएं कि क्या चीजें उन्हें नहीं देखना चाहिए और उन्हें नहीं देखने के लिए आप क्यों कह रहे हैं। लड़कियों के शरीर में जो बदलाव आने वाले हैं, उनसे इस विषय में बात करें, उन्हें सही जानकारी देना आप ही का काम है।
नौ से बारह वर्ष
ये एक ऐसी उम्र है जब लड़का हो या लड़की सभी के शरीर में बदलाव होते हैं। ऐसे में बच्चे आपसे कुछ पूछने में हिचक रख सकते हैं लेकिन आपको खुद से उन्हें समझाना होगा। थोड़े- थोड़े दिनों में शारीरिक बदलाव, मासिक धर्म, शारीरिक आवश्यकताएं आदि के बारे में आप खुद उनसे यदि बात करेंगे तो वे भी आपसे इन विषयों पर बात करने में सहज रहेंगे। यदि कोई शारीरिक अंगों से जुड़ा चुटकला है या अपशब्द है तो उन्हें बताएं कि क्यों उन्हें इन चीजों पर हंसना नहीं चाहिए या क्यों इन्हें गलत माना जाता है।
तेरह से अठारह वर्ष
यह एक ऐसी आयु है, जिसमें बच्चे सब जान चुके होते हैं और शारीरिक बदलाव, हार्मोनल परिवर्तनों के दौर से गुजर रहे होते हैं। ऐसे में बहुत जरूरी है कि आप इस बात का ध्यान रखें कि बच्चों को सही जानकारी है या नहीं। उन्हें बताएं कि दो शरीर के मिलन से एक नए शिशु जन्म लेता है। यह एक अच्छी प्रक्रिया है। इसका उपहास बनाना या मजे लेना बिल्कुल गलत हैं। उन्हें इस बात का भान कराएं कि ये सब बेहद सामान्य है और समाज में सभी के लिए यह बना है। उन्हें समझाएं कि इस उम्र में क्यों उन्हें किसी शारीरिक क्रिया की ओर आकर्षित नहीं होना चाहिए। किस चीज को करने के लिए क्या तरीका और क्या समय सही है ताकि वे गलतियां न दोहराएं।
नोट- यह लेख नोबल हॉस्पिटल की मनोचिकित्सक डॉ अनुराधा फाल्के से बातचीत के आधार पर तैयार किया गया है। डॉक्टर फाल्के पिछले 14 सालों से प्रैक्टिस कर रही हैं।
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